Sunday, December 18, 2011

गज़ल


हमारे लफ्जों में ढला है वो, खुदा की नेमत में नहीं 
हमारी आखों से बना है, आइने की सोह्बत में नहीं|

उसको यकिनन खुदा ने फुर्सत में तराशा होगा
हम भी खुदा के इरादों में ढले हैं, गर फुर्सत में नहीं|

यूं उसके गुरुर के कायल तो हम भी हैं मगर 
शोख अदाओं में है बात, दर्मयाँ सियासत में नहीं|

वो किसी रोज तो तुझे फरिश्ता भी कह देंगे 'अक्स'
रोजमर्रा की ये बात मगर फिर भी कयामत में नहीं|

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