हजारों ख्वाहिशें ऐसी..
एक शख्श से लिपटी हुई कई शख्सियतें
एक पोटली में बाँधी हुई कितनी नाकाम हस्रतें
कुछ रूह की चाहत, कुछ उम्र के तकाजे..
यकीनन टूट कर बिखर जाने, न मिलने वाली
हजारों ख्वाहिशें ऐसी..
मौजों में बलखातीं
किनारों से टकरातीं, बिखर जातीं
धड्कनों में आवाज पातीं
सासों मे घुल खामोश खो जातीं
हजारों ख्वाहिशें ऐसी...
ये आम और खास के फर्क
ये दिल के ज़ज्बे, ये पेट के मुद्दे
ये ज़र्द होते चेहरे की हंसी में कभी-कभी मिलने वाले
कभी न पूरे होने वाले इरादों की
हजारों ख्वाहिशें ऐसी..
किसी गालिब के खयालों में जन्म पातीं
किसी जालिम दुनिया के इशारों से
खौफ खातीं, सहम जातीं
हजारों ख्वाहिशें ऐसी....