वो दोस्ती, वो साथ, वो गुफ्तगू तो नहीं
लाख कह लें मगर ज़िन्दगी हु-ब-हू तो नहीं।
माना कि छूट जाने का इलज़ाम है हमपर
जो निकल गया है आगे वो भी तूं तो नहीं।
तेरा भी एहसान है कि जरा इन्सान हैं हम
तुझसे इन रंजिशों कि हमें आरजू तो नहीं।
तेरी यादों को मुस्कुराहटों में टाल देते हैं
ज़िन्दगी को तेरी कमी न हो, यूँ तो नहीं।
Saturday, March 20, 2010
Wednesday, March 3, 2010
तब और अब
गली के नुक्कड़ की जिनसे यारी रही
वो अब भी ताजे हैं दिल के किसी कोने में
सदियाँ गुज़रीं कि उनको देखा हो
मगर वो भूलते नहीं।
किसी के धक्के से बचपन में जो धूल होठों से लगी
अब भी चिपकी है,
जिंदगी को उनकी मासूम दोस्ती का जायका अब भी याद है।
जब वादों का मतलब भी न जानते थे
तब का उनसे दिलों का वादा है।
कुछ और भी थे,
जो कहीं किसी लेक्चर, किसी कैंटीन, किसी जलसे में मिले थे
कई बार निगाहों के सामने से गुज़रे,
दिल ने गवाही ही नहीं दी कि वही हैं
बस हाथ हिला के गुज़र गए।
हालांकि वादा किया था उन्होंने भी बिछड़ते वक़्त
कि ई-मेल करेंगे, अपना नंबर जरुर भेज देना....
Subscribe to:
Posts (Atom)