हमारे लफ्जों में ढला है वो, खुदा की नेमत में नहीं
हमारी आखों से बना है, आइने की सोह्बत में नहीं|
हम भी खुदा के इरादों में ढले हैं, गर फुर्सत में नहीं|
यूं उसके गुरुर के कायल तो हम भी हैं मगर
शोख अदाओं में है बात, दर्मयाँ सियासत में नहीं|
वो किसी रोज तो तुझे फरिश्ता भी कह देंगे 'अक्स'
रोजमर्रा की ये बात मगर फिर भी कयामत में नहीं|