Friday, November 16, 2012

ग़ज़ल


हमारे बस सफ़र से ही क़ायदे कुछ भंग होते हैं 
यहाँ पर हर कदम रस्ते जरा और तंग होते हैं। 

सियासी मसलों पे इस कदर न बेबाक हुआ कर 
दर्मयाँ अंधेरों-उजालों के यहाँ कई रंग होते हैं।

यहाँ सब फासले बस मंच की रवायतें भर हैं
हो नेपथ्य तो सब एक दूसरे के संग होते हैं। 

दरवाजों के सुरों से ही क्यूँ तूं बावरा है 'अक्स'
इस घर में दीवारों के भी अपने आहंग होते हैं।