Wednesday, September 26, 2012

गज़ल

अल्फाज़ जोड़ रखूं मगर, कुछ हाल-ए-दिल बयां तो हो
कहो तो फिर गज़ल कहूँ, पर कहूँ तो कुछ नया तो हो।

ज़हीन  तो  क्या  खाक  थे,  शायर  भी  अब कहाँ रहे
जो  महफिलों  में  हम कहें, जो कुछ न हो खरा तो हो।


हकीकतों  में तुम  तो  अब खबर हमारी लोगे क्या
इक ख्वाब छोड़ जाओ बस, साँसों को कुछ वजह तो हो।

ज़माने से तो लड़ भी लें, पर दोस्त तेरी खामशी?
खुशी से जो न मिल सको, कुछ रु-ब-रु गिला तो हो।

जिन्दगी तो 'अक्स' अब, बिगाड़ तेरा लेगी क्या
लुटे जो कुछ जमा भी हो, मिटे जो कुछ रहा तो हो।


Saturday, September 22, 2012

इजहार

बात पेचिदा है, नज्मों में कोइ कहे कब तक
वक्त से बंधा है, इश्क भी जिंदा  रहे कब तक
तवज्जो परछाइयों को हकिकत दे कब तक

रु-ब-रु गुफ्तगू हो तो अब करार आए।

आसमां पर कहीं उभरी सी तेरी तस्वीर रहे
औ' ज़मीं गेहुआं रंग की जैसे जागीर रहे
हवाओं में भी तेरी खुश्बू की ही तासीर रहे

हर तरफ तूं  ही तूं  हो तो अब बहार  आए।