ये खामोशियाँ कहे हैं, कोई तो बात हुई होगी
हक़ीक़त से कहीं हल्की सी मुलाकात हुई होगी।
अन्धेरों ही में पला है, उसे ड़रते तो नहीं देखा
चुपके से दिन ढ़ला होगा, चुपके रात हुई होगी।
कितने गहरे-गहरे ख्वाबों के दरख्त उजड़ गए
बड़ी जोर का तूफां था, बड़ी बरसात हुई होगी।
"या ऱब ज़माना मुझको मिटाता है किस लिए?"
ग़ालिब यही किस्सा तेरी भी हयात हुई होगी।
हक़ीक़त से कहीं हल्की सी मुलाकात हुई होगी।
अन्धेरों ही में पला है, उसे ड़रते तो नहीं देखा
चुपके से दिन ढ़ला होगा, चुपके रात हुई होगी।
कितने गहरे-गहरे ख्वाबों के दरख्त उजड़ गए
बड़ी जोर का तूफां था, बड़ी बरसात हुई होगी।
"या ऱब ज़माना मुझको मिटाता है किस लिए?"
ग़ालिब यही किस्सा तेरी भी हयात हुई होगी।