Saturday, February 9, 2013

गज़ल!

न बस ज़ज्बात, इक फल्सफा सी तेरी सोह्बत है हमें
तेरी शोखियों से ज्यादा तेरी हस्ती से मोहब्बत है हमें।

बहुत होंगे कि तेरे अन्दाज पे वफा चाहने वाले तुझसे
तेरी नज़ाकत से अजीज मगर तेरी बगावत है हमें।

मुमकिन है किसी रोज वो खुदा भी कह दें तुमको
जो है तुझसे, इंसान की इन्सां से अकीदत है हमें।

औ' तेरे इश्क में हो जाएं फ़रिश्ता, ये इम्कां भी नहीं
हाँ मगर तुझसे सुलझी सी, मुमकिन सी चाहत है हमें।


Tuesday, February 5, 2013

बात

आ कि फिर जिन्दगी की बात करें
खालिस जिन्दगी - भूखी, अधनंगी।

तारीकियां जो पिघलने लगी  हैं
नर्म ख्वाबों के नादां उजालों में
सहेज लो उनको -
काली स्याही में मिला उनसे
गाढ़े रंग की हकीकत लिखी जाएगी।

जुबां पर जो कड़वा जायका है
इश्क की खामखा मिठास से फीका पड़ने लगा है
बचा लो उसको -
बेबाकियत मीठी पड गयी
तो अल्फाज़ असर खो देंगे।