Sunday, February 21, 2010

प्लास्टिक की थैलियाँ

मोहल्ले के बाजु में कुछ खेत हैं
लोग कहते हैं वहां धान उगा करता था कभी।
मेरे बचपन में वहां क्रिकेट के मैदान थे
सिवाए बरसात के, जब पानी भर जाता था
बच्चे कागज़ की नावें तैराते थे उनमें।
अच्छी बनी नावें कभी-कभी बड़ी दूर निकल जाती थीं
उम्मीद होती थी की कोई लहर किसी रोज वापस खींच लाएगी उन्हें।
इसबार देखा तो शहर बड़ी तरक्की कर गया सा लगा
बच्चों को कागज़ की नावें बनानी नहीं आतीं
बारिस का पानी खेतों के बजाये रास्तों पर जमने लगा है
और घरों के दरम्यान जो खेत बचे हैं
उनमें प्लास्टिक की थैलियाँ तैरती हैं अब
कागज़ की नावें तो उलझ कर डूब जाएँ उनमें
अब उम्मीद नहीं रही
कोई लहर अब मेरी अच्छी नावों को कभी भी वापस नहीं ला पायेगी.....