Sunday, August 14, 2011

गज़ल

फिर वही जलसे, वो हुज़ूम, वही हाकिमों के करतब हैं
हम फिर कुछ और नाचीज़, वो कुछ और हमारे रब हैं

खुद  को  इंसाँ  कहते है तो  जीभ  कट  सी  जाती है
हमारे  चूल्हों  के  मुद्दे  भी  उनकी दावतों के सबब हैं

हमसे और हाल-ए-जम्हुरियत न पूछ मेरे दोस्त 
दिल्ली  में  होते  आजकल  बस  गूंगे  तलब  हैं