Friday, January 29, 2010

सियासत

ये जम्हूरियत के जश्न औ' ये ग़ुलाम जिंदगी
अब भी तो वही किस्से हैं तेरे नाम जिंदगी!
अब भी तो लिए जाते हैं बंद कमरों में फैसले
अब भी तो वही हाकिम वो निजाम जिंदगी!
बड़ी चर्चे हैं कि देखो ये दुनिया बदल गयी
हमको तो वही खुदा औ' वही राम जिंदगी!
दिल्ली में सुना है सड़कें भी चमकने लगी हैं अब
यहाँ महीनों से अँधेरा है शहर तमाम जिंदगी!
मैले दिलों ने कुछ रोज़ हुए खद्दर पहन लिए
जैसे शेर कि खाल ओढे हुए सियार जिंदगी!
वो रोज़ कहते हैं कि हुकूमत हमारी हो गयी
अब भी तो वही कहते हैं सुनती है आवाम जिंदगी!

Sunday, January 24, 2010

मेरी दुनिया..

कैसी उलझन, क्या-क्या लोग, कितनी बातें मेरी दुनिया

तेरी हरेक शै पर बिछीं कितनी बिसातें मेरी दुनिया।

कितनी सदियाँ अपने अश्कों से तेरे घर के दीप जले

कितनी सदियाँ हमने आखों में काटी रातें मेरी दुनिया।

तेरे मेरे रिश्ते में ये खेल अजब क्यूँ होता है

तुझपर बहार आती, होतीं जब अपनी बरसातें मेरी दुनिया।

अपना तो फिर भी है क्या, हम तो जनम के जोगी ठहरे

तेरे अपनों को ही भारी तेरी सौगातें मेरी दुनिया।

Tuesday, January 5, 2010

ग़ज़ल

आ कि वो लम्हें, वही दिल-ए-बेक़रार आये

आ कि वही शामें, वो तेरा इंतज़ार आये।

आ कि ये दुनिया, ये सियासत न याद आये

आ कि ये घातें, ये बिसातें न याद आये।

आ कि बड़ी मुद्दत से बड़ी बेसबब हूँ मैं

आ कि तूं आये तो ज़रा जीने कि वजह आये।

आ कि मेरा हक जो नहीं, गुजारिश ही समझ ले

आ कि तूं आये तो मुझे मेरी भी याद आये।

आ कि बड़ी दिल में भरे रंज-ओ-ग़म हैं जानां

आ कि तूं आये तो ज़रा इत्मिनान आये।