Tuesday, January 10, 2012

गज़ल

हम  अब और नहीं वो, ऐ खल्क़त-ए-शहर हमें याद न कर
तुझे जिसका भरम है, कोई और था शायर हमें याद न कर.

इस खाक के दम पर क्या तुझसे अदावत भी करें हम
मिट ही जाने को हैं, अब और सितमगर हमें याद न कर.

कुतरे  हुए  पंखों से  क्यूं परवाज़  की  उम्मीद है साथी
बिखरे हुए इरादों से कहाँ होता है  सफर, हमें याद न कर.

तेरी बज्मों मे खामखा मेरा नाम उठे मुनासिब तो नहीं
तूं शम्मा-ए-शब् है, हम चिराग-ए-सहर हमें याद न कर.

वो और ज़माने थे कि बज्मों की रौनक था 'अक्स'
अब तो इस ज़ानिब फक़त दर्दों के हैं मंज़र, हमें याद न कर.




3 comments:

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
Unknown said...

Sahi hai mere lekhni ke majnu ..mere gazlon ke ranjhe...

kab tak anshu bahayega ...


Shashi

Dharmendra Kumar Dheer said...

Bahut khoob...