Wednesday, June 29, 2011

गज़ल

थामे  हुए  हाथों  में  हाथ  चले  फिर 
कभी यूं हो कि तूं मेरे साथ चले फिर. 

चन्द किस्से जो बचपन में अधूरे रह गए 
साथ बैठें तो  पुरानी  वही  बात  चले फिर. 

इस इल्म, इस  मस्लहत से निजात दे दे 
आ वही नासमझी, वो जज्बात चले फिर.  

इस  झूठी  हंसी  के   सदके  सदियाँ गुजर गयीं
दिल में वही दर्द, आंखों से वो बरसात चले फिर. 









Monday, June 6, 2011

गज़ल

आह से उपजेगी आग तो तख्त-ओ-ताज भी जला करेंगे अब 
सांस थामो  कि  हुक्मरानों के  अन्दाज  भी  जला  करेंगे अब. 

आवाम की फितरत को इस कदर शर्मिंदा भी न कर जालिम
इन्ही   दियों  से  तूफानों  के मिजाज़  भी  जला  करेंगे  अब.

रूहों की  कीमत पर  आसमानों  के सौदे न कर कह देता हूँ
कुछ पंख भी कुतरे जाएंगे, कुछ परवाज़ भी  जला करेंगे अब.

तेरे इशारों पे खौफ खाने, बदल जाने वाले मौसम भी गए 
इन  बादलों  की  गरज़  से  तेरे  साज  भी जला करेंगे अब.





Wednesday, June 1, 2011

गज़ल

आजकल रु-ब-रु बारहा ये सवाल आता है 
ये गुमनामियों से हमें कौन बेज़ा निकाल आता है.

हर बार कसम देकर हालात कह देता हूँ उससे 
वो हर बार सर-ए-बजार मेरे चर्चे उछाल आता है.

कल महफिल से मेरा जाना भी अब याद नहीं 
ये साफ मुकर जाना भी उसको कमाल आता है.

रोज किसी अपने के गम में पी जाता हूँ 
रोज कोई अजनबी रस्ते से सम्भाल लाता है 

आजकल बुजदिली का ये आलम है 'अक्स'
दिल को सहम-सहम कर उसका भी ख्याल आता है.