Thursday, July 21, 2011

गज़ल

कोई उससे पूछे वो क्या चाह्ता है 
करके इतने सितम भी दुआ चाह्ता है.

मिटा दे वो हस्ती उफ भी न करें हम 
वो बेशर्त ऐसी वफा चाह्ता है.

तमाम जिस्म उसके जख्मों से छलनी
चारागर है, घायल से दवा चाह्ता है.

बददुआ भी दें तो किस तरह दें उसे  
सजदे किए थे कि खुदा हुआ चाह्ता है. 

ये दिल और दर्दों के कबिल नहीं अब 
जरा  आह भर के मिटा चाह्ता है. 

Friday, July 8, 2011

गज़ल

ये जो गफलतों के दरम्याँ कुछ नया- नया सा है 
ये क्या है जो कदमों तले कुछ आशमां सा है?  

ये जो मेरे साथ तूं है, जैसे कि देजा-वू है 
जो हो रहा है अब, जरा हुआ-हुआ सा है.

जो सोचता हूं, जैसे पहले हो चुका सा हो 
जो कह रहा हूँ सब जरा बयां-बयां सा है.

ये सब तेरा कमाल है या मेरा ख्याल है 
कुछ तो है कि बिन पिए नशा-नशा सा है.

गूंजते है फिजा में सजदे किसके नाम के 
असर है मेरे इल्म का कि तूं खुदा सा है?

Friday, July 1, 2011

गज़ल

तन्हाईयों का ज़हर है, जो अब जिन्दगी देता है 
अब हिज्र शुकूं देता है औ' दर्द खुशी देता है.

तेरे जाने की यादों का असर भी अजीब है 
इक उम्र रुलाया है, कुछ रोज से तसल्ली देता है. 

फिक्र-ओ-अरमां में कुछ इस कदर घुट गए थे
बर्बादियों का मंज़र भी अब संजीदगी देता है.

तेरे जहीन पेशों के कहाँ काबिल थे हम
ये हुनर अच्छा है, जरा आवारगी देता है.