Thursday, March 17, 2011

गज़ल

सुनेंगे फसाने तो इश्क का अन्जाम भी मांगेंगे
लोग  मेरी  नज्मों  से  तेरा  नाम  भी  मांगेंगे. 

कहते तो हो कुछ और हसीं गज़लें भी लिखूं
उन जुल्फों की बात उठी तो वो शाम भी मांगेंगे.

लड़खडा के गुजरुंगा अपने शहर से कभी फिर 
दोस्त पुराने, मेरे नशे से तेरा जाम भी मांगेंगे.

जुड़ा तेरे नाम से किसी का नाम भी तो होगा 
सुनने  वाले  पुरानी तेरी पहचान भी मांगेंगे.

तेरे ख्यालों पे भी हक अब जताउं तो कैसे
हिसाब तो लोग महफिल में सरेआम भी मांगेंगे.   


Tuesday, March 8, 2011

गज़ल

आजकल क्या  है  कि बात  कुछ बताई नहीं जाती
लब पे आती है जो आह, लफ्जों में लाई नहीं जाती.

कल तलक हुनर मे ढाला हुआ इक शौक था दर्द 
अब  ये  आदत  कुछ  हमसे निभाई नहीं जाती.

लग गया है होश किसी बददुआ की तरह साकी 
जाम की ओट में भी इल्म की परछाई नहीं जाती.

हर शै तेरा असर भी खोता जाता है लम्हा-लम्हा 
तेरे कूचे से गुजर कर भी अब तन्हाई नहीं जाती.

ये  गुरुर,  ये  रुतबा,  ये  ठेंगे  पे  मुकद्दर 
आलम-ए-गर्दिश में भी ये जौक-ए-खुदाई नहीं जाती.