यूँ बिखरी भी हैं जुल्फें हवा के झोंके से कभी
हमने देखी है सहर शाम के झरोखे से कभी।
तेरे आने की आस लेकर गुजरे हैं कई ज़माने
इस जानिब भी आ जाओ बिना आहट के धोखे से कभी।
ये उदासी न पूछ बैठे कि उसके सिवा भी क्या है
ये दर्द-ए-दिल भी जाने कि तुम भी होते थे कभी।