Saturday, August 28, 2010

शिकायत

ये टूटे से लोगों को झूठी तसल्ली
ये रोटी की किल्लत में रंगीं नज़ारे,
मुहब्बत की गलियों में सियासत के चर्चे
ये अमावस की रातों के कृत्रिम सितारे |

खामोश धड़कन में बीते हुए दर्द
सुनता है कौन, भरे कौन आहें ?
गुमनाम उम्मीद में कटते हुए दिन
ये टूटते ख्वाबों की बेबस सी रातें |

ये महफ़िल ये लोगों के हसीं ताने-बाने
काँटों में उलझे ये रेशम के धागे,
बहुत हमने चाहा हमें रास आये
ये मेला जिसे दुनिया कहते हैं सारे ...

Friday, August 13, 2010

ग़ज़ल

नजारों की हकीक़त ख्वाबों से बगावत करती है
निगाहें भी अपनी हमीं से सियासत करती हैं

लफ्ज़ उठते हैं, कुछ और बयाँ कर जाते हैं
बात फिर मेरी, हमीं से शिकायत करती है

ज़िन्दगी तूं ही बता क्या न किया तेरे लिए
तूं है कि सब अपनी वफाओं को हिमाकत कहती है

हम से नाराजी, जो झुके हैं सजदे में मेरे मौला
दुनिया तो अब और खुदाओं की इबादत करती है