Sunday, September 11, 2011

गज़ल

आवारा लफ्जों को फुसलाने, नज्में बनाने वाले
अब कहाँ लोग वो,  दर्दों  के  नाज  उठाने वाले 

दिल की सतहों उठती है, जो बात बयां होती है
सबकी नजरों छुपा रक्खे हैं वो दर्द पुराने वाले

नब्ज़ देखी है, अभी जिन्दा हूँ, धडकनें बाकी हैं
रुक के सजदे क्यूं करते हैं यूं मशरुफ ज़माने वाले

शौक अच्छा है, तुम भी सिख गए वादों का हुनर 
यूं इस बज्म मे आते हैं सब लौट के जाने वाले

जी में आया तो खुश्क मौसम से कारिगरी कर ली
मुझसे ही नकली हैं ये फूल इस डाल पे आने वाले.

Sunday, September 4, 2011

क्या आप कांग्रेसी हो?


एक साहब स्वभाव से थोड़े रुखड़े थे 
सुबह-सुबह अपने बकरे पर उखड़े थे..
मैने पूछा - "क्या हुआ?"
वो बोले - "क्या बताएँ साहब!
चार महीने से सीखा रहा हूँ
पूरा मुंह खोल - मैडम-मैडम बोल.
मुंह  पूरा खोलता ही नहीं 
मैं-मैं बोलता है, 'डम' बोलता ही नहीं!"
मैने कहा - "देशी है, हिन्दी बोलता है, अंग्रेजी क्यूं सिखलाते हो?"
वो बोले - " क्या फरक पड़ता है देशी हो, विदेशी हो?"
मैने पूछा - "क्या आप कांग्रेसी हो?"

एक साहब साहब सुबह-सुबह चिल्ला रहे थे
पानी न आने की वजह से झल्ला रहे थे
इसके पीछे आर एस एस का हाथ बतला रहे थे 
मैने कहा - "भाई ऐसे कामों मे साथ तो आपका ही होता है,
मुद्दा जो भी हो आमतौर पर 'हाथ' तो आपका ही होता है." 
साहब भडक कर बोले - "तुम कौन हो?
सी बी आइ लगवा दूंगा, बोलते कुछ बेसी हो"
मैने पुछा - "क्या आप कांग्रेसी हो?"