Wednesday, April 20, 2011

गज़ल

जिन्दगी तेरा काफिला हमें 
ये ले के आया है कहाँ हमें.

क्यूं जल रही हैं ये बस्तियाँ 
क्यूं डरा रहा है  धुआं हमें.  

ये वक्त कैसे रुक गया 
जरा हाथ थाम औ' चला हमें 

अब झूठ-मूठ दिलासे न दे 
हो चला है सबकुछ पता हमें.

आखिर में वो भी कह गया 
"न पुकारा करो खुदा हमें"

रहने दो अपनी पहचान गुम
यहाँ रहने दो नाआशना हमें 




Sunday, April 17, 2011

गज़ल

एक  दुनिया  है कि  ख्वाबों मे  जवां  होती है 
एक हकीकत है जो मुश्किल से बयां होती है . 

वो जो  कहते हैं कि शायर है, बडा कबिल है 
दिल-ए-नाशाद को ये  तारीफ सजा होती है. 

तेरी दुनिया के तरीके सीखें भी कहाँ से साकी 
तेरी बज्मों में बस अमीरों से वफा होती है.

दिल तो नादां है, उड़ने की ख्वाहिश करता है 
खौफ होता है कि ज़मीं पैरों से जुदा होती है.

हसरतों के पाँव छिल गए दर-ब-दर फिरते
इस शहर मे सुना था गरीबी की दवा होती है.