वादे तो टूट गए, रिश्ता है टूटता ही नहीं
जो हमें छोड़ गया, हमसे छूटता ही नहीं।
लब तरसते हैं अदद इक नाम की खातिर
अपने पाले में अब तूँ भी नहीं, खुदा भी नहीं।
इन गलियों से पूछो मेरे घर तक ले जाएँगी हमें?
घर जो याद आता भी नहीं, घर जो कभी भुला भी नहीं।
देख पाता तो नहीं, दोस्तों के कहकहे सुनाई देते हैं
शहर यूँ पराया तो नहीं, अब आशना भी नहीं।
कोई बता दे, क्या अब भी शाम आती है यहाँ?
यूँ मुद्दत से तेरी जुल्फों का साया भी नहीं।