आजकल क्या है कि बात कुछ बताई नहीं जाती
लब पे आती है जो आह, लफ्जों में लाई नहीं जाती.
कल तलक हुनर मे ढाला हुआ इक शौक था दर्द
अब ये आदत कुछ हमसे निभाई नहीं जाती.
लग गया है होश किसी बददुआ की तरह साकी
जाम की ओट में भी इल्म की परछाई नहीं जाती.
हर शै तेरा असर भी खोता जाता है लम्हा-लम्हा
तेरे कूचे से गुजर कर भी अब तन्हाई नहीं जाती.
ये गुरुर, ये रुतबा, ये ठेंगे पे मुकद्दर
आलम-ए-गर्दिश में भी ये जौक-ए-खुदाई नहीं जाती.
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