सुन मन्द-मन्द उठता है राग
हकीकत मे जैसे घुल जाए ख्वाब
अब किस जोगी का तोडे विराग
तेरा शृंगार!
कितना अहं, कितनी है साख
हैं मौन छंद, कविता आवाक
किसको न तेज से कर जाए राख
तेरा शृंगार!
जो खुले केश तो उठे बयार
जो उठें पलकें छा जाए बहार
जाने किसके अब जगाए भाग
तेरा शृंगार!
2 comments:
tareef ke liye lafz kam padh rahe hai
kuch aisa hai iss "गीत" ka शृंगार
Aapki anumati ho to isse kisi din hum bhi apna batakar sunaayenge kisiko :)
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