सुनेंगे फसाने तो इश्क का अन्जाम भी मांगेंगे
लोग मेरी नज्मों से तेरा नाम भी मांगेंगे.
कहते तो हो कुछ और हसीं गज़लें भी लिखूं
उन जुल्फों की बात उठी तो वो शाम भी मांगेंगे.
लड़खडा के गुजरुंगा अपने शहर से कभी फिर
दोस्त पुराने, मेरे नशे से तेरा जाम भी मांगेंगे.
जुड़ा तेरे नाम से किसी का नाम भी तो होगा
सुनने वाले पुरानी तेरी पहचान भी मांगेंगे.
तेरे ख्यालों पे भी हक अब जताउं तो कैसे
तेरे ख्यालों पे भी हक अब जताउं तो कैसे
हिसाब तो लोग महफिल में सरेआम भी मांगेंगे.
2 comments:
अवि जी,ये जो आपके अन्दर का 'अहमद फ़राज़' जागकर आया है इस दौर में बहुत सारी गजलें लिख डालिए|
मेरे पास शब्द नहीं हैं कहने को आपकी इस ग़ज़ल पर,और आप अब मुझे यह कहकर बिलकुल शर्मिंदा मत करें कि मैं आपसे अच्छा लिखता हूँ | बिल्कुल असहमत हूँ मैं आप से|
तेरे ख्यालों पे भी हक अब जताउं तो कैसे
हिसाब तो लोग महफिल में सरेआम भी मांगेंगे...
har baar ki tarah...kya baat hai....bas aur kya hi kahoon :)
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