Wednesday, December 14, 2011

गज़ल

जो कुछ नहीं है जिन्दगी में, ये फुसूं भी है
जरा नाकामियों से फिक्र है, जरा शुकूं भी है|

आवरगी बढ़ गई कुछ इस कदर कि आजकल
हंसी को ये खबर नहीं, अश्क रु-ब-रु भी है|

जब भी पी के कह गए, लोग हंस के रह गए
बदनाम आदतें हैं जो, अपनी आबरू भी हैं|

अपनी आदतों से वो खफा-खफा सा है मगर
उससे तल्खियाँ हैं, वो मुझसा हु-ब-हू भी है|

करते परवा तो कबके खाक हो जाते 'अक्स'
मिटे जहाँ-जहाँ सफर, तखलीक जुस्तजू भी है|



2 comments:

GYANRANJAN said...

Nice one,........i read it twice, could understand 50% of it..........its great....keep on.

RISHABH DEO said...

wonderfull