Sunday, November 20, 2011

चन्द आवारा खयाल

दिल्ली की किसी सर्द सुबह
लोग जगने को हों
धुन्धलका छाने को हो
तेरा हाथ थामे दूर निकाल जाऊँ
सूनी सड्कों पर इक्का-दुक्का लोगों के दर्मियाँ
किसी टी-स्टाल पर जो खुला ही हो
गर्म चाय की प्याली हाथ में ले
भट्टी से निकलते धुएँ से पूछूं
"बता किसका रंग ज्यादा साफ है?"

किसी तपती दोपहर के बाद
जब शाम ढलने को हो
सरस्वती घाट (इलाहाबाद) से किसी बोट पर चलें
संगम के बिल्कुल पास जब सूरज पानी में डूबने को हो
यमुना के पानी पर उन्गली से तेरा नाम लिखूं
किसी रोज समंदर को पता तो चले
नम्कीं किसको कहते हैं...

अपने शहर के चौराहे पर
जहाँ एक तरफ मस्जिद है, दूसरी तरफ मन्दिर
आजकल बडी भीड़ होती है वहाँ,
वहीं थोडी दूर वो गोलगप्पे वाला
अब जरा बूढा हो चला है
वो बचपन वाली बात नहीं रही उसमें
वहीं किसी रोज तुम मिल जाओ अचानक,
देखूँ बात गोलगप्पों में थी या तुम्हारे साथ में..


1 comment:

Dharmendra Kumar Dheer said...

बहुत सुन्दर ....