ये बेपनाह आवारगी कभी खल जाती है तो गज़ल कह्ता हूँ
शौक ही शौक में जान पे बन आती है तो गज़ल कह्ता हूँ.
वो जिसे होश कहते हैं, मशरूफ जिन्दगी की बेहोशियाँ हैं
फुर्सत जो कभी मैकदे में लाती है तो गज़ल कह्ता हूँ .
वो जो मैं था, हो के खाक बिखर गया था तेरे शहर में
हवा ये तुझसे आखिरी रब्त भी उड़ाती है तो गज़ल कह्ता हूँ
दर्द एक ख्याल है, 'शायरी' कोई शौक का सामां तुझको
तूं न समझेगा, आह कोई दब जाती है तो गज़ल कह्ता हूँ.
शौक ही शौक में जान पे बन आती है तो गज़ल कह्ता हूँ.
वो जिसे होश कहते हैं, मशरूफ जिन्दगी की बेहोशियाँ हैं
फुर्सत जो कभी मैकदे में लाती है तो गज़ल कह्ता हूँ .
वो जो मैं था, हो के खाक बिखर गया था तेरे शहर में
हवा ये तुझसे आखिरी रब्त भी उड़ाती है तो गज़ल कह्ता हूँ
दर्द एक ख्याल है, 'शायरी' कोई शौक का सामां तुझको
तूं न समझेगा, आह कोई दब जाती है तो गज़ल कह्ता हूँ.
4 comments:
दर्द एक ख्याल है, 'शायरी' कोई शौक का सामां तुझको
तूं न समझेगा, आह कोई दब जाती है तो गज़ल कह्ता हूँ. waah :)
every line is awesome :)
bahut khoob...ab to har roz is umeed se fbk kholta hoon ki aapki koi khoobsoorat nazm mil jaye padhne ko to khusgawar ho din..shubhkamnayen!!
बहुत खूब
wah wah... kya khoob kehte ho jab ghazal kehte ho :)
internet se agyatwas ke dauran aapki bahut si rachnayen miss ho gayi thi.. aaj is oar nazar padi to dekha... sab hi behtereen hain :)
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