Wednesday, November 16, 2011

गज़ल

ये चमन, फिजा, दिन-रात, ये शाम-सबेरा कोई नहीं 
आशना हैं सब मगर इस शहर में तेरा कोई नहीं 

इसी रस्ते से हर रात गुजरता है बना वो बन्जारा 
चांद कि खातिर आसमान पर रैन-बसेरा कोई नहीं

जाने मेरी हर महफिल में नाम तेरा आ ही जाता है 
इन नज्मों में कई बरसों से ज़िक्र तो तेरा कोई नहीं









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