ये चमन, फिजा, दिन-रात, ये शाम-सबेरा कोई नहीं
आशना हैं सब मगर इस शहर में तेरा कोई नहीं
इसी रस्ते से हर रात गुजरता है बना वो बन्जारा
चांद कि खातिर आसमान पर रैन-बसेरा कोई नहीं
जाने मेरी हर महफिल में नाम तेरा आ ही जाता है
इन नज्मों में कई बरसों से ज़िक्र तो तेरा कोई नहीं
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