Friday, July 1, 2011

गज़ल

तन्हाईयों का ज़हर है, जो अब जिन्दगी देता है 
अब हिज्र शुकूं देता है औ' दर्द खुशी देता है.

तेरे जाने की यादों का असर भी अजीब है 
इक उम्र रुलाया है, कुछ रोज से तसल्ली देता है. 

फिक्र-ओ-अरमां में कुछ इस कदर घुट गए थे
बर्बादियों का मंज़र भी अब संजीदगी देता है.

तेरे जहीन पेशों के कहाँ काबिल थे हम
ये हुनर अच्छा है, जरा आवारगी देता है.















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