कोई उससे पूछे वो क्या चाह्ता है
करके इतने सितम भी दुआ चाह्ता है.
मिटा दे वो हस्ती उफ भी न करें हम
वो बेशर्त ऐसी वफा चाह्ता है.
तमाम जिस्म उसके जख्मों से छलनी
चारागर है, घायल से दवा चाह्ता है.
बददुआ भी दें तो किस तरह दें उसे
सजदे किए थे कि खुदा हुआ चाह्ता है.
ये दिल और दर्दों के कबिल नहीं अब
जरा आह भर के मिटा चाह्ता है.
1 comment:
एक बार फिर से...... बड़ा वाला धन्यवाद रहेगा.... एकदम गूढ़ लिखते हैं भाई :)
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