Wednesday, June 29, 2011

गज़ल

थामे  हुए  हाथों  में  हाथ  चले  फिर 
कभी यूं हो कि तूं मेरे साथ चले फिर. 

चन्द किस्से जो बचपन में अधूरे रह गए 
साथ बैठें तो  पुरानी  वही  बात  चले फिर. 

इस इल्म, इस  मस्लहत से निजात दे दे 
आ वही नासमझी, वो जज्बात चले फिर.  

इस  झूठी  हंसी  के   सदके  सदियाँ गुजर गयीं
दिल में वही दर्द, आंखों से वो बरसात चले फिर. 









2 comments:

Manish Khedawat said...

bahut sunder rachna :)

Manish Kumar said...

Ghazbesh!!!!!!!!!!

बहुत-बहुत धन्यवाद... एक बार फिर से चित्त प्रसन्न हुआ...... :)