थामे हुए हाथों में हाथ चले फिर
कभी यूं हो कि तूं मेरे साथ चले फिर.
चन्द किस्से जो बचपन में अधूरे रह गए
साथ बैठें तो पुरानी वही बात चले फिर.
इस इल्म, इस मस्लहत से निजात दे दे
आ वही नासमझी, वो जज्बात चले फिर.
इस झूठी हंसी के सदके सदियाँ गुजर गयीं
दिल में वही दर्द, आंखों से वो बरसात चले फिर.
2 comments:
bahut sunder rachna :)
Ghazbesh!!!!!!!!!!
बहुत-बहुत धन्यवाद... एक बार फिर से चित्त प्रसन्न हुआ...... :)
Post a Comment