चंद लम्हों को यूं खो तो गए हैं हम
कौन कह्ता है इस शहर में नए हैं हम.
छिले हुए घुटने और लिपटी हुई मिट्टी
मुद्दत से गर्दिशों के लाडले हैं हम
कितनी थकी हारी शामें भी याद हैं
कितनी सुबहों को फिर चल पडे हैं हम
हमें मिट जाने का खौफ न दो दुनिया
खाक की सोह्बत में तो पले हैं हम
अपनी तह्जीब कि नजरें झुका रक्खी हरदम
यूं जालीम तुझसे कब डरे हैं हम
4 comments:
हमें मिट जाने का खौफ न दो दुनिया
खाक की सोह्बत में तो पले हैं हम
waah muktesh ji..mast hai..:)
Badhiya likha hai aapne.... Inspiring as well
syah raat nam nahi leti hai dlne ka ,yahi to waqt hai suraj tere niklne ka
syah raat nam nahi leti hai dhlne ka,yahi to waqt hai suraj tere niklne ka
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