Monday, October 26, 2009

ग़ज़ल

ये बेरुखी इस अहद-ए-वफ़ा के नाम क्यूँ मौला
सुबह की धूप पर लिख दी तूने शाम क्यूँ मौला?

तिनका-तिनका उड़ा गयीं सब ख्वाब सारे आशियाँ
अपनी ही हवाएं हो गयीं अंजान क्यूँ मौला?

हँसते-हँसते रो गए तो बात सारी खो गई
कहकहों को सिसकियों का अंजाम क्यूँ मौला?

अब तो आने थे फिजाओं में बहारों के ज़माने
अभी ये गुलशन को पतझड़ इनाम क्यूँ मौला?

1 comment:

Manish Kumar said...

are kuchh huha likhe hain Avimuktesh Ji...... sahi mein mann khush ho gaya padh ke.... ab se jab bhi aisa kuchh likha kijiye, please humko mail kar diya kijiye...