Wednesday, December 9, 2009

बस इतना कि ....

तुम मेरे झरोखे से
दुनिया को कभी देखो...
"मीलों तक मेले हैं
मेलों में सहरा है
कितनी आवाजें हैं
चुप्पी का पहरा है। "
अब अल्फाज़ नही जुडते
ख्याल चूक गए हैं,
बातें हलक तक आ के सहम गई हैं.....
जाने किसको नाराज़ कर दें....
बस इतना कि
"ज़ख्म दिल पे लगे हैं
ख्यालों पे नहीं,
दर्द कोई शौक नहीं....
उदासी आदत भी नही..."

1 comment:

asmita said...

great writing avimuktesh!!hats off!i felt like readin it 1 more time n then 1 more time n yet 1 more time!too good!keep up ur good work!