दिल के दामन में हैं कब से, आबाद ये बरबादियाँ
कोई किस्से अब नहीं, अब हैं बस तनहाइयाँ।
कल तलक तो जल रहे थे दिन के सफर में पाँव
शाम पर भी पड़ गयीं अब धूप की परछाईयाँ।
मतलब की है दुनिया, रिश्ते नहीं सियासत थे सब
दो पल में ही बतला गयीं सब वक्त की सरगोशियाँ।
दोस्त! हमीं तेरे वक्त को मुनासिब न थे
चल अच्छी ही लगीं सब हमको तेरी रुस्वाइयाँ ।
3 comments:
ek baar phir se bahut hi achchhi kavita mili...... keep it up....
dhanyawad Manish ji!
nice!!
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