Monday, December 8, 2008

चंद शेर

निगाहों को कोई चीज यहाँ आशना न रही
गफलत है हमें, या शहर में वो फिजां न रही?
दिल से निकली हुई हर बात ने इतने मतलब देखे,
ज़बां को कुछ और कहने की तमन्ना न रही।



वीरानी सी गलियों में सुहाना कोई मंजर आए
कोई शाम तेरी जुल्फों से गुजरती फ़िर इधर आए
तेरे जाने से खो गए हैं शहर के सब ठिकाने
फ़िर किसी रस्ते से गुजरूँ कि तेरा घर आए।



मुकद्दर था कि ठहरे जरा दस्तूर था कि चल दिए
ये कारवां ए वक्त है ये जिंदगी के काफिले,
आदमी तेरी किस्मत कि ये फितरत बड़ी अजीब है
जो दास्ताँ ए वस्ल है, है हिज्र के ही वास्ते।




जिंदगी किसी मौज़ का बहता हुआ पानी है
यहाँ पर वक्त और हालात कुछ रोज़ में बदल जाते हैं,
इस ग़म को तुन पलेगा आख़िर कब तलक शायर?
सब रिश्ते, सब ज़ज्बात, कुछ रोज़ में बदल जाते हैं।

3 comments:

pankaj said...

i am really impressed with ur writing style. the way in which u are writeing is really mind blowing. keep it up........

pankaj said...

i don't have word to say only such talent get those people who comes in world rarely....

Unknown said...

mind blowing..m speechless.... hat-off... for such a talent !!!