Saturday, January 17, 2009

बनाम साकी........

ये जुस्तजू, ये गर्दिशें, ये हालात क्या जाने
ये बेबसी, ये जिंदगी, ये जज्बात क्या जाने?

खुदा करे, हर जंग तेरी, जीत से हो रु-ब-रु
तूँ साजिशें, ये बाजियाँ, ये शह औ मात क्या जाने?

तेरे दम से सारी रात जगा था मैकदा साकी!
कहीं हम ने रो रो के गुजारी है रात क्या जाने?

तेरी बज्म में जगह पा गए सब अपने भी, पराये भी
तुझे देख कर भी हलक तक रह गई बात क्या जाने?

चल अच्छा ही हुआ शहर में कोई आशना न रहा
बहुत होता था भरम हमीं को देता है कोई हाथ क्या जाने?

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