मैं बड़ी उम्मीद से कहता हूँ कोई बात,
वो बड़ी बेदिली से अनसुना सा गुजार देती है।
जो गम मुझे जीने नहीं देते
अब उनके मायने नहीं उसको।
मेरे दर्द ख्याली पुलिंदे हैं
मेरी रूह कोई बेसबब सामान।
वो मेरा गुरुर थी जिसे आजकल ख़ुद उतार देती है।
मैं बड़ी शौक से अल्फाज़ पिरोता हूँ
वो बड़ी तसल्ली से नकार देती है।
अब अदने शायर की ख्वाहिश नहीं उसको भी,
वो, मेरी नज़्म-
आजकल वो भी मेरे दोस्तों सा बर्ताव करती है.............
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