Thursday, June 13, 2013

गज़ल

अबके शायर को जरा जिंदगी की दवा दे मौला
हां ठीक कह्ता हूं अब ये हस्ती ही मिटा दे मौला।

रेशा-रेशा जल रहे हैं जान-ओ-दिल कब से कहूँ
ये खामखा की लौ - दे फूंक अब बुझा दे मौला।

ये जलती हुई आंखें, ये कश्मकश, ये ख्वाब न दे
अबके रात ढले तो गहरी नींद बस सुला दे मौला।

अब ये नज्में औ' न गज़लें औ' न ये जज्बात ही
अबके जिन्दा रख हमें तो दिल भी दुनिया सा दे मौला। 

1 comment:

Unknown said...

ये जिंदगी सुकून मांगती है
ये दिल सुकून मांगता है
अरे चलते चलते थक गया है ये समय
अब तो ये समय भी सुकून मांगता है
मैंने क्यूँ बनाया था इंसान
ये सोच सोच कर थक गया है खुदा
अरे अब तो खुदा भी सुकून मांगता है