Saturday, January 19, 2013

सुन बावरी!

सुन बावरी!
सब एक हैं - ये धूप भी और छांह भी
इस भेद का ये भेद है
जो है खुशी सो खेद है
जो है हंसी सो आह भी।

सुन बावरी!
इस खेल की ये रीत है
ये रंग सब खो जाएंगे
तब एक रंग हो जाएंगे
सब जीत भी और हार भी।

सुन बावरी!
अब छूट जाने दे हमें
तेरी राह के हैं मिथक भर
अब टूट जाने दे हमें
ले नफरतें और प्यार भी।

सुन बावरी .....

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