Tuesday, February 5, 2013

बात

आ कि फिर जिन्दगी की बात करें
खालिस जिन्दगी - भूखी, अधनंगी।

तारीकियां जो पिघलने लगी  हैं
नर्म ख्वाबों के नादां उजालों में
सहेज लो उनको -
काली स्याही में मिला उनसे
गाढ़े रंग की हकीकत लिखी जाएगी।

जुबां पर जो कड़वा जायका है
इश्क की खामखा मिठास से फीका पड़ने लगा है
बचा लो उसको -
बेबाकियत मीठी पड गयी
तो अल्फाज़ असर खो देंगे।





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