आ कि फिर जिन्दगी की बात करें
खालिस जिन्दगी - भूखी, अधनंगी।
तारीकियां जो पिघलने लगी हैं
नर्म ख्वाबों के नादां उजालों में
सहेज लो उनको -
काली स्याही में मिला उनसे
गाढ़े रंग की हकीकत लिखी जाएगी।
जुबां पर जो कड़वा जायका है
इश्क की खामखा मिठास से फीका पड़ने लगा है
बचा लो उसको -
बेबाकियत मीठी पड गयी
तो अल्फाज़ असर खो देंगे।
खालिस जिन्दगी - भूखी, अधनंगी।
तारीकियां जो पिघलने लगी हैं
नर्म ख्वाबों के नादां उजालों में
सहेज लो उनको -
काली स्याही में मिला उनसे
गाढ़े रंग की हकीकत लिखी जाएगी।
जुबां पर जो कड़वा जायका है
इश्क की खामखा मिठास से फीका पड़ने लगा है
बचा लो उसको -
बेबाकियत मीठी पड गयी
तो अल्फाज़ असर खो देंगे।
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