Wednesday, September 26, 2012

गज़ल

अल्फाज़ जोड़ रखूं मगर, कुछ हाल-ए-दिल बयां तो हो
कहो तो फिर गज़ल कहूँ, पर कहूँ तो कुछ नया तो हो।

ज़हीन  तो  क्या  खाक  थे,  शायर  भी  अब कहाँ रहे
जो  महफिलों  में  हम कहें, जो कुछ न हो खरा तो हो।


हकीकतों  में तुम  तो  अब खबर हमारी लोगे क्या
इक ख्वाब छोड़ जाओ बस, साँसों को कुछ वजह तो हो।

ज़माने से तो लड़ भी लें, पर दोस्त तेरी खामशी?
खुशी से जो न मिल सको, कुछ रु-ब-रु गिला तो हो।

जिन्दगी तो 'अक्स' अब, बिगाड़ तेरा लेगी क्या
लुटे जो कुछ जमा भी हो, मिटे जो कुछ रहा तो हो।


2 comments:

Unknown said...

amazingly written. there was not one line which didn't make me admire this.

Avimuktesh said...

Thanks Sachin :)