Saturday, September 22, 2012

इजहार

बात पेचिदा है, नज्मों में कोइ कहे कब तक
वक्त से बंधा है, इश्क भी जिंदा  रहे कब तक
तवज्जो परछाइयों को हकिकत दे कब तक

रु-ब-रु गुफ्तगू हो तो अब करार आए।

आसमां पर कहीं उभरी सी तेरी तस्वीर रहे
औ' ज़मीं गेहुआं रंग की जैसे जागीर रहे
हवाओं में भी तेरी खुश्बू की ही तासीर रहे

हर तरफ तूं  ही तूं  हो तो अब बहार  आए।





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