Friday, May 25, 2012

न जुनूं -ए-इश्क़ ही, न सूफियाना एहतराम तेरा 
'अक्स' अब जमात-ए-शायर में कहाँ काम तेरा. 

ले दे के जो बचता है गम-ए-दौरां तो उसका क्या 
हर्फ़-हर्फ़ बेमतलब तेरे, है शेर-शेर नाकाम तेरा 

इबादत जो नहीं करता, मय से तो रिश्ता रख 
साकी से यारी है तेरी, न कायल है इमाम तेरा.

है हुनर शाहों का कि फकीरों का, क्या आए तुझे?
ज़हीनों में गिनती है, न बर्बादों में है नाम तेरा. 


1 comment:

Rohan Bhatore said...

kya baat kahi hai
maya mili na raam :(