न जुनूं -ए-इश्क़ ही, न सूफियाना एहतराम तेरा
'अक्स' अब जमात-ए-शायर में कहाँ काम तेरा.
ले दे के जो बचता है गम-ए-दौरां तो उसका क्या
हर्फ़-हर्फ़ बेमतलब तेरे, है शेर-शेर नाकाम तेरा
इबादत जो नहीं करता, मय से तो रिश्ता रख
साकी से यारी है तेरी, न कायल है इमाम तेरा.
है हुनर शाहों का कि फकीरों का, क्या आए तुझे?
ज़हीनों में गिनती है, न बर्बादों में है नाम तेरा.
1 comment:
kya baat kahi hai
maya mili na raam :(
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