Saturday, January 15, 2011

ग़ज़ल

कहाँ हैं अब, वो तुम, वो मैं, वो शाम वो किस्से
किन्हीं वजहों से सारे शहर में बदनाम वो किस्से

वो नुक्कड़ पे जमने वाली रोज़ की महफ़िलें
आवारगी का, गर्दिशों का अंजाम वो किस्से.

वो जाड़े की सुबह, वो अलाव, वो हिंदी अख़बार
चाय पे सियासत के चर्चों के नाम वो किस्से.

जिंदगी को देखने के नज़रिए ही बदल गए
न वो फुर्सत, न शुकूं, न सर-ए-आम वो किस्से.

2 comments:

sangam said...

mast hai aviji...
aapka likha padh kar main bhi gazal likhna seekh jaunga....aaj tak kabhi koshish nahi ki,ab aapka saath mila hai to...

Letters to Soul... said...

mast hai ..:)