साँस ले कि ज़िन्दगी अब और सह सकती नहीं.
ले देख तेरे सब्र का तो अब यही अंजाम है
मशहूर तेरी ख़ामोशी है, तूं मगर बदनाम है
जुल्म हुआ है सही पर क्या करे आवाम है
इस तरह तूं हो भले महफूज़ पर गुमनाम है.
अब और अपने दर्द पर तूं सब्र लिखना छोड़ दे
इस घुटन में जीवटें अब और जी सकतीं नहीं.
क्या हुआ कि फिर अचानक भीड़ में तू खो गया
जख्म गहरा था मगर फिर आह भर चुप हो गया
जागती आँखों में तेरा ख्वाब फिर से सो गया
और वो कहते तेरा क्या हँस गया फिर रो गया.
इन ख्वाबों कि कैफियत तूं अब बदल भी दे जरा
जलती हुई आँखों में ठन्डे ख्वाब पल सकते नहीं.
3 comments:
like this line .. जलती हुई आँखों में ठन्डे ख्वाब पल सकते नहीं.
ghutan se bahar aane ki koshish malum padti hai
Wine gets better and better as it ages.......so is the case wid u :D
just another addition to ur excellent "Shaayari"
bahut achha laga aviji,,,lekhni vaastavikta ke jitne karib ho,utni gehrai tak utar jaati hai
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