आज फिर शाम है, दर्द है, तन्हाई है.
एक जमीं पैरों तले से खोती जाती है
एक जमीं ख्वाबों ने आश्मां पे बनाई है.
आज कुछ लम्हा ज़िन्दगी भुला दी मैंने
आज कुछ लम्हा फिर याद तेरी आई है.
मुझे मालूम है फिर मेरा भरम ही होगा
देखूं तो किन्ही कदमों की आहट सी आई है
तूं सच ही कहता रहा है मेरे दोस्त
अपनी आह फरेब, तेरा सितम भी मसीहाई है.
3 comments:
बहुत उम्दा!
सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!
-समीर लाल 'समीर'
waah :)
बहुत खूब...
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