Tuesday, October 22, 2013

गज़ल

तुम होते तो यक़ीनन न ये हिस्से में बयाबां होते 
मगर तुम भी मेरे होते तो तारीख का हिस्सा होते। 

स्याह होने से तो क्या उम्र ख्यालों की कम होगी 
तुम होते तो जरा रंग अशआर में जियादा होते।  

हमको तो रास आ गयीं गुमनामियां तुम्हारे बाद 
तुम भी तो अब इस भीड़ से जियादा कहां होगे? 

हमने तो अपनी इबादतों में ढूंढ़ लिया खुदको 
गर सुनते मेरी फ़रियाद, तुम भी तो खुदा होते। 


No comments: