एक-एक मुट्ठी मिट्टी कुरेदता -
अब अच्छी जगह बना ली है उसने
चंद अरमान, कुछ दर्द, कुछ उफनते हुए जज्बात
सब समा जाएंगे इसमें।
बहुत खटकता था न आंखों में?
अब दफ़्न कर दो शायर को -
तसब्बुर की जमीं पर
गमों ने एक कब्र सी बना दी है
वहीं,
जो तमाम नज्में तुम्हारे नज्र की थीं,
सब रख आना एक पोटली में बांध
और ड़ाल जाना उनपर
चन्द शिकायतें, कुछ नसीहतें
औ' शायद कुछ मजबूरियां भी।
अब अच्छी जगह बना ली है उसने
चंद अरमान, कुछ दर्द, कुछ उफनते हुए जज्बात
सब समा जाएंगे इसमें।
बहुत खटकता था न आंखों में?
अब दफ़्न कर दो शायर को -
तसब्बुर की जमीं पर
गमों ने एक कब्र सी बना दी है
वहीं,
जो तमाम नज्में तुम्हारे नज्र की थीं,
सब रख आना एक पोटली में बांध
और ड़ाल जाना उनपर
चन्द शिकायतें, कुछ नसीहतें
औ' शायद कुछ मजबूरियां भी।
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