Friday, February 24, 2012

गज़ल

ये जो तेरे हर मोड़ पर जिंदा अफसाने मिल जाते हैं
दो कदम चल दो तो दो लोग पह्चाने मिल जाते हैं|

हैरां हूँ हर शै को है इतनी  पहचान मेरी कैसे
हैरां हूँ हर बात में कैसे अशआर पुराने मिल जाते हैं। 

है किसे शौक, जाए कौन इस आबो-हवा को छोड़ कर
क्या करुं इन्सां हूँ, कुछ रस्म निभाने मिल जाते हैं|

वो एक शहर है, तूं वहाँ खो ही तो जाएगा 'अक्स'
यहाँ तो अब भी हर सिम्त यारों के ठिकाने मिल जाते हैं।