Thursday, September 30, 2010

बददुआ

जो अगर कल न हो.....
तुम्हारे दिलों कि तारीकियाँ
फिर से हमारी सुबह खा जाएँ
सर जो कभी सजदे में झुके
फिर उठ ही न पाए
यही रूहों में पलता हुआ खौफ हमारी ज़िन्दगी है....
जाने आसमां के आगे कोई दुनिया ही न हो
कि जिसका वास्ता देते हैं वो खुदा भी न हो
जिनकी दुआ असर नहीं लाती
क्या जाने बेअसर उनकी बददुआ भी न हो 
मगर ये ख्वाहिश है
कि खुदा करे  किसी रोज़ हमारी जिंदगी तुम भी जिओ
हमारी जिंदगी के फैसले लिखने वालों
जो कभी तुम्हारी भी आँखें नींद से बोझल हों
तो दिल में  कल जाग न पाने का खौफ पले...

1 comment:

Ashutosh Kumar Mishra said...

simply awesome..
मगर ये ख्वाहिश है
कि खुदा करे किसी रोज़ हमारी जिंदगी तुम भी जिओ
हमारी जिंदगी के फैसले लिखने वालों
जो कभी तुम्हारी भी आँखें नींद से बोझल हों
तो दिल में कल जाग न पाने का खौफ पले.